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Saturday, 11 June 2016

सूर्य नमस्कार आसन

संसार में दिखाई देने वाली सभी वस्तुओं का मूल आधार सूर्य ही है। सभी ग्रह और उपग्रह सूर्य की आकर्षण शक्ति के द्वारा ही अपने निश्चित आधार पर घूम रहे हैं। संसार में ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य ही है और इसके द्वारा ही संसार की गतिविधियों का संचालन होता है। सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा के कारण ही प्रकृति में परिवर्तन आता है इसलिए योगशास्त्रों में सूर्य नमस्कार आसन का वर्णन किया गया है। सूर्य नमस्कार आसन से मिलने वाले लाभों को विज्ञान भी मानता है। सूर्य नमस्कार आसन के अभ्यास से शरीर में लचीलापन आता है तथा विभिन्न प्रकार के रोगों में लाभ होता है। इसकी 12 स्थितियां होती हैं। सभी स्थिति अपनी पहली स्थिति में आई कमी को दूर करती है। इस आसन में शरीर को विभिन्न रूपों में तानकर और छाती को अदल-बदल कर संकुचित व विस्तरित कर सांस क्रिया की जाती है। इससे शरीर की मांसपेशियों, जोड़ों और रीढ़ की हड्डी में लचीलापन आने के साथ आंतरिक अंगों की मालिश भी होती है। सूर्य नमस्कार आसन की 12 स्थितियों को क्रमबद्ध रूप से करें। सूर्य नमस्कार आसन के साथ कुछ मंत्रों को पढ़ने के लिए भी बताया गया है। इन मंत्रों का अभ्यास करते हुए जाप किया जाता है, जिससे इसका लाभ बढ़ जाता है। सूर्य नमस्कार आसन का अभ्यास ऐसे स्थान पर करें, जहां पूरे शरीर पर सूर्य की रोशनी पड़ सके तथा इस आसन का अभ्यास सूर्य उदय के 1 से 2 घंटे के अंदर तथा सूर्य की तरफ मुंह करके करें।

सूर्य नमस्कार आसन की 12 स्थितियां
सूर्य नमस्कार आसन के लिए पहले सीधे खड़े होकर पीठ, गर्दन और सिर को एक सीध में रखें।

पहली स्थिति
सूर्य नमस्कार आसन के लिए पहले सीधे खड़े होकर पीठ, गर्दन और सिर को एक सीध में रखें। दोनों पैरों को मिलाकर सावधान की स्थिति बनाएं। दोनों हाथों को जोड़कर छाती से सटाकर नमस्कार या प्रार्थना की मुद्रा बना लें। अब पेट को अंदर खींचकर छाती को चौड़ा करें। इस स्थिति में आने के बाद अंदर की वायु को धीरे-धीरे बाहर निकाल दें और कुछ क्षण उसी स्थिति में रहें। इसके बाद स्थिति 2 का अभ्यास करें। अब सांस अंदर खींचते हुए दोनों हाथों को कंधों की सीध में ऊपर उठाएं और जितना पीछे ले जाना सम्भव हो ले जाएं।

दूसरी स्थिति
अब सांस अंदर खींचते हुए दोनों हाथों को कंधों की सीध में ऊपर उठाएं और जितना पीछे ले जाना सम्भव हो ले जाएं। फिर सांस बाहर छोड़ते और अंदर खींचते हुए सीधे खड़े हो जाएं। ध्यान रखें कि कमर व घुटना न मुड़े। इसके बाद 3 स्थिति का अभ्यास करें।

तीसरी स्थिति
सांस को बाहर निकालते हुए शरीर को धीरे-धीरे सामने की ओर झुकाते हुए हाथों की अंगुलियों से पैर के अंगूठे को छुएं। इस क्रिया में हथेलियों और पैर की एड़ियों को बराबर स्थिति में जमीन पर सटाने तथा धीरे-धीरे अभ्यास करते हुए नाक या माथे को घुटनों से लगाने का भी अभ्यास करना चाहिए। यह क्रिया करते समय घुटने सीधे करके रखें। इस क्रिया को करते हुए अंदर भरी हुई वायु को बाहर निकाल दें। इस प्रकार सूर्य नमस्कार के साथ प्राणायाम की क्रिया भी हो जाती है। अब चौथी स्थिति का अभ्यास करें। ध्यान रखें- आसन की दूसरी क्रिया में थोड़ी कठिनाई हो सकती है इसलिए नाक या सिर को घुटनों में सटाने की क्रिया अपनी क्षमता के अनुसार ही करें और धीरे-धीरे अभ्यास करते हुए क्रिया को पूरा करने की कोशिश करें। अब सांस अंदर खींचते हुए दोनों हाथ और बाएं पैर को वैसे ही रखें तथा दाएं पैर को पीछे ले जाएं और घुटने को जमीन से सटाकर रखें।

चौथी स्थिति
अब सांस अंदर खींचते हुए दोनों हाथ और बाएं पैर को वैसे ही रखें तथा दाएं पैर को पीछे ले जाएं और घुटने को जमीन से सटाकर रखें। बाएं पैर को दोनो हाथों के बीच में रखें। चेहरे को ऊपर की ओर करके रखें तथा सांस को रोककर ही कुछ देर तक इस स्थिति में रहें। फिर सांस छोड़ते हुए पैर की स्थिति बदल कर दाएं पैर को दोनो हाथों के बीच में रखें और बाएं पैर को पीछे की ओर करके रखें। अब सांस को रोककर ही इस स्थिति में कुछ देर तक रहें। फिर सांस को छोड़े। इसके बाद पांचवीं स्थिति का अभ्यास करें। अब सांस को अंदर खींचकर और रोककर दोनों पैरों को पीछे की ओर ले जाएं। इसमें शरीर को दोनो हाथ व पंजों पर स्थित करें।

पांचवीं स्थिति
अब सांस को अंदर खींचकर और रोककर दोनों पैरों को पीछे की ओर ले जाएं। इसमें शरीर को दोनो हाथ व पंजों पर स्थित करें। इस स्थिति में सिर, पीठ व पैरों को एक सीध में रखें। अब सांस बाहर की ओर छोड़ें। इसके बाद छठी स्थिति का अभ्यास करें। अब सांस को अंदर ही रोककर रखें तथा हाथ, एड़ियों व पंजों को अपने स्थान पर ही रखें। अब धीरे-धीरे शरीर को नीचे झुकाते हुए छाती और मस्तक को जमीन पर स्पर्श कराना चाहिए
छठी स्थिति
अब सांस को अंदर ही रोककर रखें तथा हाथ, एड़ियों व पंजों को अपने स्थान पर ही रखें। अब धीरे-धीरे शरीर को नीचे झुकाते हुए छाती और मस्तक को जमीन पर स्पर्श कराना चाहिए और अंदर रुकी हुई वायु को बाहर निकाल दें। इसके बाद सातवीं स्थिति का अभ्यास करें। फिर सांस अंदर खींचते हुए वायु को अंदर भर लें और सांस को अंदर ही रोककर छाती और सिर को ऊपर उठाकर हल्के से पीछे की ओर ले जाएं।

सातवीं स्थिति
फिर सांस अंदर खींचते हुए वायु को अंदर भर लें और सांस को अंदर ही रोककर छाती और सिर को ऊपर उठाकर हल्के से पीछे की ओर ले जाएं और ऊपर देखने की कोशिश करें। इस क्रिया में सांस रुकी हुई ही रहनी चाहिए। इसके बाद आठवीं स्थिति का अभ्यास करें। अब सांस को बाहर छोड़ते हुए आसन में नितम्ब (हिप्स) और पीठ को ऊपर की ओर ले जाकर छाती और सिर को झुकाते हुए दोनों हाथों के बीच में ले आएं।

आठवीं स्थिति
अब सांस को बाहर छोड़ते हुए आसन में नितम्ब (हिप्स) और पीठ को ऊपर की ओर ले जाकर छाती और सिर को झुकाते हुए दोनों हाथों के बीच में ले आएं। आपके दोनों पैर नितंबों की सीध में होने चाहिए। ठोड़ी को छाती से छूने की कोशिश करें और पेट को जितना सम्भव हो अंदर खींचकर रखें। यह क्रिया करते समय सांस को बाहर निकाल दें। यह भी एक प्रकार का प्राणायाम ही है। इसके बाद नौवीं स्थिति का अभ्यास करें। इस आसन को करते समय पुन: वायु को अंदर खींचें और शरीर को तीसरी स्थिति में ले आएं। इस स्थिति में आने के बाद सांस को रोककर रखें।

नौवीं स्थिति
इस आसन को करते समय पुन: वायु को अंदर खींचें और शरीर को तीसरी स्थिति में ले आएं। इस स्थिति में आने के बाद सांस को रोककर रखें। अब दोनों पैरों को दोनों हाथों के बीच में ले आएं और सिर को आकाश की ओर करके रखें। इसके बाद दसवीं स्थिति का अभ्यास करें। इसमें सांस को बाहर छोड़ते हुए अपने शरीर को दूसरी स्थिति की तरह बनाएं। आपकी दोनो हथेलियां दोनो पैरों के अंगूठे को छूती हुई होनी चाहिए।

दसवीं स्थिति
इसमें सांस को बाहर छोड़ते हुए अपने शरीर को दूसरी स्थिति की तरह बनाएं। आपकी दोनो हथेलियां दोनो पैरों के अंगूठे को छूती हुई होनी चाहिए। सिर को घुटनों से सटाकर रखें और अंदर की वायु को बाहर निकाल दें। इसके बाद ग्याहरवीं स्थिति का अभ्यास करें। अब पुन: फेफड़े में वायु को भरकर पहली स्थिति में सीधे खड़े हो जाएं। इस स्थिति में दोनों पैरों को मिलाकर रखें।

ग्याहरवीं स्थिति
अब पुन: फेफड़े में वायु को भरकर पहली स्थिति में सीधे खड़े हो जाएं। इस स्थिति में दोनों पैरों को मिलाकर रखें और पेट को अंदर खींचकर छाती को बाहर निकाल लें। इस तरह इस आसन का कई बार अभ्यास कर सकते हैं। अब सांस बाहर छोड़ते हुए पहली वाली स्थिति की तरह नमस्कार मुद्रा में आ जाएं। शरीर को सीधा व तानकर रखें।

बारहवीं स्थिति
अब सांस बाहर छोड़ते हुए पहली वाली स्थिति की तरह नमस्कार मुद्रा में आ जाएं। शरीर को सीधा व तानकर रखें। इसके बाद दोनों हाथ को दोनों बगल में रखें और पूरे शरीर को आराम दें। इस प्रकार इन 12 क्रियाओं को करने से सूर्य नमस्कार आसन पूर्ण होता है।

सावधानी
सूर्य नमस्कार आसन का अभ्यास हार्निया रोगी को नहीं करना चाहिए। ध्यान- सूर्य नमस्कार आसन का अभ्यास करते हुए अपने ध्यान को विशुद्धि चक्र पर लगाएं।
सूर्य नमस्कार आसन की विभिन्न स्थितियों में रोग में लाभ
सूर्य नमस्कार आसन की 10 स्थितियों से अलग-अलग लाभ प्राप्त होते हैं। 

पहली स्थिति
यह स्थिति पेट, पीठ, छाती, पैर और भुजाओं के लिए लाभकारी होती है।

दूसरी स्थिति
दूसरी स्थिति में हथेलियों, हाथों, गर्दन, पीठ, पेट, आंतों, नितम्ब, पिण्डलियों, घुटनों और पैरों को लाभ मिलता है।

तीसरी स्थिति
तीसरी स्थिति में पैरों व हाथों की तलहथियों, छाती, पीठ और गर्दन को लाभ पहुंचता है।

चौथी स्थिति
चौथी स्थिति में हाथ, पैरों के पंजों और गर्दन पर असर पड़ता है।

पांचवीं स्थिति
पांचवी स्थिति में बाहों और घुटनों पर बल पड़ता है और वह शक्तिशाली बनते हैं।

छठी स्थिति
छठी स्थिति में भुजाओं, गर्दन, पेट, पीठ के स्नायुओं और घुटनों को बल मिलता है।

सातवीं स्थिति
सातवीं स्थिति में हाथों, पैरों के पंजों, नितम्बों (हिप्स), भुजाओं, पिण्डलियों और कमर पर दबाव पड़ता है।

आठवीं स्थिति
आठवीं स्थिति में हथेलियों, हाथों, गर्दन, पीठ, पेट, आंतों, नितम्ब (हिप्स), पिण्डलियों, घुटनों और पैरों पर बल पड़ता है।

नौवीं स्थिति
नौवीं स्थिति में हाथों, पंजों, भुजाओं, घुटनों, गर्दन व पीठ पर बल पड़ता है।

दसवीं स्थिति
दसवीं स्थिति में पीठ, छाती और भुजाओं पर दबाव पड़ता है तथा उस स्थान का स्नायुमण्डल में खिंचाव होता है। परिणामस्वरूप वह अंग शक्तिशाली व मजबूत बनता है।

सूर्य नमस्कार के साथ पढ़े जाने वाले मंत्र
सूर्य नमस्कार आसन में विभिन्न मंत्रों को पढ़ने का नियम बनाया गया है। इन मंत्रों को विभिन्न स्थितियों में पढ़ने से अत्यंत लाभ मिलता है। सूर्य नमस्कार का अभ्यास क्रमबद्ध रूप से करते हुए तथा उसके साथ मंत्र का उच्चारण करते हुए अभ्यास करना चाहिए। 

ऊँ ह्राँ मित्राय नम:।
ऊँ ह्राँ रवये नम:।
ऊँ ह्रूँ सूर्याय नम:।
ऊँ ह्रैं मानवे नम:।
ऊँ ह्रौं खगाय नम:।
ऊँ ह्र: पूष्पो नम:।
ऊँ ह्राँ हिरण्यगर्भाय नम:।
ऊँ ह्री मरीचये नम:।
ऊँ ह्रौं अर्काय नम:।
ऊँ ह्रूँ आदित्याय नम:।
ऊँ ह्र: भास्कराय नम:।
ऊँ ह्रैं सविणे नम:।

ऊँ ह्राँ ह्री मित्ररविभ्याम्:।
ऊँ ह्रू हें सूर्याभानुभ्याम नम:।
ऊँ ह्रौं ह्री खगपूषभ्याम् नम:।
ऊँ ह्रें ह्रीं हिरण्यगर्भमरीचियाम् नम:।
ऊँ ह्रू ह्रू आदित्यसविती्याम्:।
ऊँ ह्रौं ह्रः अर्कभास्कराभ्याम् नम:।
ऊँ ह्राँ ह्रां ह्रूँ ह्रैं मित्ररवि सूर्यभानुष्यो नम:।
ऊँ ह्र ह्रें ह्रौं ह्र: आदित्यसवित्रर्कफारकरेभ्यो नम:।
ऊँ ह्रों ह्रः ह्रां ह्रौं खगपूशहिरिण्यगर्भ मरीचिभ्यो नम:।
ऊँ ह्राँ ह्रों ह्रं ह्रै ह्रौं ह्रः, ऊँ ह्राँ ह्रीं ह्रू ह्रैं ह्रीं ह्रः मित्र रविसूर्यभानुखगपूषहिरण्यग भमरीच्यादिन्यासवित्रक भास्करूभ्यो नम:। 

इन मंत्रों को दो और बार पढ़ें।

ऊँ श्री सवित्रेन सूर्यनारायण नम:।

आसन के अभ्यास से रोग में लाभ:
सूर्य नमस्कार आसन का अभ्यास करने से शरीर स्वस्थ व रोगमुक्त रहता है। इससे चेहरे पर चमक व रौनक रहती है। यह स्नायुमण्डल को शक्तिशाली बनाता है और ऊर्जा केन्द्र को ऊर्जावान बनाता है। इसके अभ्यास से मानसिक शांति व बुद्धि का विकास होता है तथा स्मरण शक्ति बढ़ती है। इस आसन को करने से शरीर में लचीलापन आता है तथा यह अन्य आसनों के अभ्यास में लाभकारी होता है। इससे सांस से सम्बंधित रोग, मोटापा, रीढ़ की हड्डी और जोड़ो का दर्द दूर होता है। इस आसन को करने से आमाशय, जिगर, गुर्दे तथा छोटी व बड़ी आंतों को बल मिलता है और इसके अभ्यास से कब्ज, बवासीर आदि रोग समाप्त होते हैं।

झूलन-ढुलकन आसन

झूलन-ढुलन आसन! आपने इस आसन का नाम कम ही सुना होगा। हालांकि बालपन में आपने यह आसन जरूर किया होगा। शरीर का आधार रीढ़ होता है। रीढ़ को मजबूत बनाने के लिए यह आसन बहुत अच्छा है। झूलन-लुढ़कन आसन को करने से रीढ़ की हड्डी और जोड़ पहले से ज्यादा लचकदार और मजबूत होते हैं।

झूलना-लुढ़कना आसन की विधि
(अ)
* सबसे पहले पीठ के बल सीधा लेट जाएं।
* अब दोनों पैरों को मोड़ते हुए वक्ष तक लाएं
* दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसाकर घुटनों के पास पैरों को कसकर पकड़ें।
-यह प्रारंभिक स्थिति है।
(ब)
* अब शरीर को क्रमश: दाहिनी और बाईं ओर लुढ़काते हुए पैर के बगल के हिस्से को जमीन से स्पर्श कराएं।
* 5 से 10 बार यह अभ्यास करें।
* पूरे अभ्यास के समय श्वास-प्रश्वास को सामान्य रखें।
(स)
* नितम्बों को जमीन से थोड़ा ऊपर रखते हुए उकडूं बैठें।
* दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसाकर घुटनों के ठीक नीचे पैरों को कसकर पकड़ें।
* संपूर्ण शरीर को मेरूदंड पर आगे‌-पीछे लुढ़काएं।
* अब आगे की ओर लुढ़कते समय पांवों पर बैठने की स्थिति में आने का प्रयत्न करें।
* 5 से 10 बार आगे-पीछे लुढ़कें।

फिर से (पुनश्च:)
इस आसन को करने के लिए लेट जाएं। दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ लें। अब घुटनों को छाती की ओर ले जाएं और अपने हाथों से पैरों को घुटनों के पास से पकड़ लें। फिर श्वास भरें और आगे की ओर झूलते हुए श्वास छोड़ें। अब पीछे की ओर लुढ़कते हुए श्वास भरें। इस आसन को करने के दौरान सिर को बचाकर रखें। इस आसन को करते समय कोशिश करें कि आगे की ओर झूलते हुए आप पैरों के बल बैठ जाएं। इस प्रक्रिया को करने से पीठ के बल आगे-पीछे लुढ़कते-झूलते हुए रीढ़ के सभी जोड़ों का व्यायाम हो जाता।

सावधानी
इस आसन को करते समय रीढ़ को ज्यादा सुरक्षा देने के लिए मोटा कंबल बिछाएं। जिन लोगों को पहले से कमर या पीठ में दर्द की शिकायत हो उन्हें इस आसन से परहेज करना चाहिए।

आसन का लाभ
यह आसन नियमित करने से पीठ, नितम्ब और कटि-प्रदेश की मालिश करता है और पीठ, कमर, नितंब की चर्बी को कम करता है।

मत्स्यासन


मत्स्य का अर्थ है- मछली। इस आसन में शरीर का आकार मछली जैसा बनता है, अत: यह मत्स्यासन कहलाता है। यह आसन छाती को चौड़ा कर उसे स्वस्थ बनाए रखने में सक्षम है।
सावधानी
छाती व गले में अत्यधिक दर्द या अन्य कोई रोग होने की स्थिति में यह आसन न करें। बड़ी सावधानी से यह आसन करना चाहिए, शीघ्रता से गर्दन में मोच आ जाने का भय रहता है, क्योंकि धड़ को बिल्कुल ऊपर कर देना होता है। 
यह आसन एक मिनट से दो मिनट तक किया जा सकता है।
इसके लाभ
इससे आंखों की रोशनी बढ़ती है। गला साफ रहता है तथा छाती और पेट के रोग दूर होते हैं। रक्ताभिसरण की गति बढ़ती है, जिससे चर्म रोग नहीं होता। दमे के रोगियों को इससे लाभ मिलता है। पेट की चर्बी घटती है। खांसी दूर होती है।

चक्रासन

चक्र (chakrasana yoga or Wheel Posture) का अर्थ है पहिया। इस आसन में व्यक्ति की आकृति पहिये के समान नजर आती है इसीलिए इसे चक्रासन कहते हैं। यह आसन भी उर्ध्व धनुरासन के समान माना गया है।
अवधि/दोहराव:
चक्रासन को सुविधानुसार 30 सेकंड से एक मिनट तक किया जा सकता है। इसे दो या तीन बार दोहरा सकते हैं।
चक्रासन की विधि:
सर्वप्रथम शवासन में लेट जाएं। फिर घुटनों को मोड़कर, तलवों को भूमि पर अच्छे से जमाते हुए एड़ियों को नितंबों से लगाएं। कोहनियों को मोड़ते हुए हाथों की हथेलियों को कंधों के पीछे थोड़े अंतर पर रखें। इस स्थिति में कोहनियां और घुटनें ऊपर की ओर रहते हैं। श्वास अंदर भरकर तलवों और हथेलियों के बल पर कमर-पेट और छाती को आकाश की ओर उठाएं और सिर को कमर की ओर ले जाए।
फिर धीरे-धीरे हाथ और पैरों के पंजों को समीप लाने का प्रयास करें, इससे शरीर की चक्र जैसी आकृति बन जाएगी। अब धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए शरीर को ढीला कर, हाथ-पैरों के पंजों को दूर करते हुए कमर और कंधों को भूमि पर टिका दें। और पुन: शवासन की स्थिति में लौट आएं।
सावधानी:
चक्रासन अन्य योग मुद्राओं की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण है। यदि आप इस आसन को नहीं कर पा रहे हैं तो जबरदस्ती न करें।
चक्रासन का लाभ:
मेरुदंड को लचिला बनाकर शरीर को वृद्धावस्था से दूर रखता है। शरीर में शक्ति और स्फूर्ति बनी रहती है। यह रीढ़, कंधे, कमर, पीठ, पेट सभी को स्वस्थ बनाए रखकर शक्ति प्रदान करता है। यह हृदय प्रणाली को सुचारू रूप से चलायमान रखता है।

Wednesday, 8 June 2016

पवन मुक्त आसन योग

पवन मुक्त आसन अपने नाम के अनुसार है. इस योग की क्रिया द्वारा शरीर से दूषित वायु को शरीर से मुक्त किया जाता है. पवन मुक्त की क्रिया आसान और सरल है.
कुछ दिनों के अभ्यास से इसे आप आसानी से कर सकते हैं. इस योग के विषय में आइये बात करें.
पवन मुक्त आसन के लाभ – Benefits of Pavanamuktasana Yoga
पवन मुक्त आसन उदर के लिए बहुत ही लाभप्रद है. इस योग से गैसटिक, पेट की खराबी में लाभ मिलता है. पेट की बढ़ी हुई चर्बी के लिए भी यह बहुत ही लाभप्रद है. कमर दर्द, साइटिका, हृदय रोग, गठिया में भी यह आसन लाभकारी होता है. स्त्रियों के लिए गर्भाशय सम्बन्धी रोग में पावन मुक्त आसन काफी फायदेमंद होता है. इस आसन से मेरूदंड और कमर के नीचे के हिस्से में मौजूद तनाव दूर होता है.

पवन मुक्त योग में सावधानियां

जिन लोगों को कमर दर्द की शिकायत हो उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए अगर करना हो तो कुशल प्रशिक्षक की देख रेख में करना चाहिए. जिनके घुटनों में तकलीफ हो उन्हें स्वस्थ होने के बाद ही यह योग करना चाहिए. हार्नियां से प्रभावित लोगों को भी स्वस्थ होने के बाद ही यह योग करना चाहिए. स्त्रियों को मासिक के समय यह योग नहीं करना चाहिए.
पवन मुक्त आसन की विधि – Pavanamuktasana Yoga Technique
  • पवन मुक्त आसन पीठ के बल लेट कर किया जाने वाला आसन है. इस आसन के लिए
  • Step 1 पीठ के बल शवासन की मुद्रा में लेट जाएं.
  • Step 2 धीरे धीरे दोनों घुटनों को मोड़कर तलवों को ज़मीन पर टिकाएं
  • Step 3.दोनों हाथों से दोनों घुटनों को ऊपर से पकड़ें और सांस लेते हुए दोनों पैर के घुटनों को सीने से लगाएं और 10-20 सेकेंड तक सांस रोक कर रखें.
  • Step 4 घुटनों को दोनों हाथों से मुक्त करें फिर सांस छोड़ते हुए पैरों को सीधा करके सामान्य स्थिति में लौट आएं. इस क्रिया को 4-5 बार दुहराएं.

दंडासन योग मुद्रा

बैठकर किये जाने वाले योगों में एक है दंडासन. इस योग से रीढ़ की हड्डी सीधी रहती है. यह सिटिंग पोस्चर के लिए बेहतरीन योग है. योग का अभ्यास करने वालो के लिए इस योग की मु्द्रा कई प्रकार से लाभदायक है.
दंडासन के लाभ (Benefits of Dandasana)
इस योग के अभ्यास से सही ठंग से बैठना का तरीका जान पाते हैं.  इस योग की मुद्रा का नियमित अभ्यास करने से हिप्स और पेडू में मौजूद तनाव दूर होता है और इनमें लचीलापन आता है. इस आसन से कमर मजबूत और सुदृढ़ होता है.
दंडासन अवस्था Dandasana Yoga Posture 
बैठकर किये जाने वाले योग मुद्राओं में दंडासन प्राथमिक अवस्था का योग है.  इस योग की मुद्रा में शरीर के ऊपरी और नीचले हिस्से दोनों का ख्याल रखना होता है.  शरीर का ऊपरी हिस्सा सीधा और तना हुआ रहना चाहिए. इस स्थिति में सामान्य और सहज रहना चाहिए.  शरीर का नीचला हिस्सा ज़मीन से लगा होना चाहिए.  इस स्थिति में शरीर को सीधा रखने के लिए जरूरत के अनुसार जंघाओं पर हाथ रखने के बजाय, आप हाथों को पीछे कमर पर ले जाकर दोनों हाथों की उंगलियों के बीच बंधन बनाकर कमर का सहारा दे सकते हैं. अगर कमर को मोड़ना कठिन हो तो सहारा देने के लिए आप कम्बल को मोड़कर उसपर बैठ सकते है.
योग क्रिया – Dandasana Yoga Step by Step
  • 1.दंडासन में सबसे पहले सीधा तन कर बैठना चाहिए और दोनों पैरों को चहरे के समानान्तर एक दूसरे से सटाकर सीधा रखना चाहिए.
  • 2.हिप्स को ज़मीन की दिशा में थोड़ा दबाकर रखना चाहिए और सिर को सीधा रखना चाहिए.
  • 3 अपने पैरो की उंगलियों को अंदर की ओर मोड़ें और तलवों ये बाहर की ओर धक्का दें.

अश्व संचालन योग

अश्व संचालन योग मुद्रा दो शब्दों से मिलकर बना है.अश्व का अर्थ होता है घोड़ और संचालन का अर्थ है चलाना.इस मुद्रा में जिस प्रकार घोड़े को दौड़ाया जाता है उस मुद्रा में शरीर को रखकर योग का अभ्यास किया जाता है.इस योग का अभ्यास कैसे किया जाना चाहिए.यह हमारे लिए किस प्रकार लाभप्रद है आइये इसे देखें.
अश्व संचालन योग के लाभ – Bbenefits of Ashwa Sanchalana Yoga
अश्व संचालन योग से जंघाओं में स्थित तनाव दूर होता है.यह मुद्रा मेरूदंड को सीधा बनाने रखने के लिए कारगर होता है.यह छाती और हिप्स के लिए अच्छा व्यायाम होता है.इससे श्वसन क्रिया अच्छी रहती है.इस आसन के अभ्यास से जंघाओं और शरीर में लचीलापन आता है जिससे पीछे की ओर झुककर किया जिन योग मुद्राओं का अभ्यास किया जाता है उन्हें अभ्यास करते समय विशेष परेशानी नहीं होती है.इसी प्रकार बैठकर जिन आसनों का अभ्यास किया जाता है उनके लिए भी यह योग बहुत ही लाभकारी होता है.

अश्व संचालन अवस्था
 – Ashwa Sanchalana Yoga Posture and Technique
इस आसन के अभ्यास के समय कमर झुके नहीं इसके लिए मेरूदंड सीधा और लम्बवत रखना चाहिए.अभ्यास के समय श्वसन के साथ धड़ और मेरूदंड ऊपर की ओर हो इसका ख्याल रखना चाहिए और प्रश्वास के साथ कमर नीचे की ओर हो इसका ध्यान रखना चाहिए.इस मुद्रा का अभ्यास करते समय चाहें तो घुटनों के नीचे कम्बल या तौलिया रख सकते हैं इससे आपके घुटने रिलैक्स रहेंगे.

सावधानियां 

जब घुटनों में अथवा हिप्स में किसी प्रकार की परेशानी हो उस समय इस मद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए.

योग क्रिया
 – Ashwa Sanchalana Yoga Step by Step
  • स्टेप 1 टेबल मुद्रा के समान हथेलियों और घुटनों पर शरीर को स्थापित करें.
  • स्टेप 2 बाएं पैर को आगे बढ़ाएं और दोनों हाथों के बीच पैर को लाएं.
  • स्टेप 3 हथेलियो से ज़मीन को दबाएं.धड़ को ऊपर उठाएं.
  • स्टेप 4 मेरूदंड को सीधा आगे की ओर खींच कर रखें.
  • स्टेप 5 सिर और गर्दन को आगे की ओर मेरूदंड की सीध में रखें.छाती को आगे की ओर झुकाकर नहीं रखें.
  • स्टेप 6 इस मुद्रा में 30 सेकेण्ड से 1 मिनट तक बने रहें.
  • स्टेप 7 दोनों तरफ 5-6 बार इसे दुहराएं.