
इससे साँस की गति गति की रुकावट समाप्त होकर शांति महसूस है।
विधि : सबसे पहले पेट के बल लेट जाएँ। ठोड़ी भूमि पर टिकाएँ। दोनों हाथ कमर से सटे हुए और हथेलियाँ उपर रखें। दोनों पैर भी एक दूसरे से सटे हुए हो।
फिर सर्व प्रथम दोनों हाथों को उपर उठाते हुए उसकी कैंची जैसी आकृति बनाकर उस पर सिर रखते हैं। इसके बाद पैरों में सुविधानुसार दूरी बनाए रखें।
सावधानी : दोनों पैरों में इतना अंतर रखते हैं कि भूमि को स्पर्श करें। सीना भूमि से उठा हुआ रखते हैं। दोनों हाथों की कैंची जैसी आकृति बनाने के बाद ही सिर को बीच में रखते हैं। श्वास-प्रश्वास स्वाभाविक अवस्था हो।
इस आसन के अभ्यास से समस्त कशेरुकाओं, माँसपेशियों को आराम मिलता है। शरीर में रक्त प्रवाह सुचारु रूप से होने लगता है जिससे वे हमेशा स्वस्थ और निरोगी रहते है।
इस आसन की स्थिति में फेफड़े फैलते है जिससे इनके अंदर प्राणवायु अधिक मात्रा में अंदर जाती है तथा दूषित वायु बाहर निकलती है। इसलिए दमा रोग निवारण में भी सहायता मिलती है। इस आसन में शवासन के भी लाभ प्राप्त होते है।
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